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नीली झील से सफेद पहाड़ों तक : पैंगोंग से चंगला पास का अद्भुत सफर

पैं गोंग झील से लौटते हुए जब हमारी गाड़ी दरबुक पहुँची, तो एक अनजानी दिशा में मुड़ गई — सोलटक होते हुए चांगला पास के रास्ते लेह की ओर। यह रास्ता भले ही सामान्य मानचित्रों में प्रमुख न हो, लेकिन जो रोमांच और नैसर्गिक सौंदर्य इस मार्ग ने हमें दिया, वह जीवन भर की अमूल्य धरोहर बन गया।

दरबुक से चढ़ाई लगभग तुरंत ही आरंभ हो गई। ऊँचे पहाड़ों की श्रृंखला को पार करते हुए हमारी गाड़ी एक नदी के किनारे चलने लगी। यह दृश्य अत्यंत मोहक था — एक ओर पहाड़, दूसरी ओर कल-कल बहती नदी, और बीच से गुजरती हमारी गाड़ी। लेकिन धीरे-धीरे हम ऊँचाई की ओर बढ़ते गए, और मौसम ने करवट ले ली। तापमान तेजी से गिरने लगा।

जैसे ही सोलटक नजदीक आया, सामने एक झील पूरी तरह बर्फ से जमी हुई दिखाई दी। यह दृश्य मेरे लिए पहली बार था — एक जीवंत हिमनद को प्रत्यक्ष देखना। किसी चलचित्र जैसा दृश्य सामने था। चारों तरफ श्वेत बर्फ की चादर बिछी हुई थी। हवा में ठंडक की तीव्रता थी, लेकिन भीतर उत्साह की गर्मी थी। स्थानीय लोगों से पता चला कि पिछली रात जमकर बर्फबारी हुई थी और सड़क को खुलवाने के लिए सुबह-सुबह बर्फ हटाई गई थी। सोचकर ही रोंगटे खड़े हो गए कि हम कुछ घंटे पहले आते तो शायद यह रास्ता बंद ही होता।

सोलटक से आगे चढ़ाई और भी कठिन हो गई। अब तो चारों ओर सिर्फ बर्फ ही बर्फ थी। सड़क कहीं-कहीं पिघली हुई बर्फ के कारण गीली और फिसलन भरी हो चुकी थी। यह हिस्सा सबसे चुनौतीपूर्ण था। एक छोटी सी चूक और वाहन सैकड़ों फीट नीचे गिर सकता था। हम सब चुप थे — सांसें थमी हुई थीं, दिल की धड़कनें तेज़ थीं। लेकिन हमारे निडर और अनुभवी ड्राइवर थरचिन बेहद सावधानी से गाड़ी को नियंत्रित करते रहे। उनकी एकाग्रता और आत्मविश्वास ही था कि हम सुरक्षित आगे बढ़ते रहे।

अंततः हम लगभग 18,000 फीट की ऊँचाई पर स्थित चांगला पास पहुँच गए। यह इस मार्ग का सबसे ऊँचा बिंदु है। वहाँ पहुँचते ही मन श्रद्धा और कृतज्ञता से भर उठा। हमने ईश्वर का धन्यवाद किया, और कुछ देर वहां रुककर इस अद्वितीय प्राकृतिक दृश्य को अपलक निहारा। सामने दूर तक फैली हिमाच्छादित पर्वतमालाएं थीं, जैसे किसी चित्रकार ने आकाश को सफेद रंग से भर दिया हो। सूरज निकल आया था, लेकिन उसकी किरणें ठंड के सामने मानो पराजित थीं।

अब आगे का रास्ता ढलान का था, परंतु यह भी कम कठिन नहीं था। बर्फ की परतें अब भी बनी हुई थीं, और कहीं-कहीं सड़क संकरी और फिसलन भरी थी। कुछ किलोमीटर तक हम बहुत धीमी गति से आगे बढ़े। लेकिन जैसे-जैसे हम नीचे उतरते गए, रास्ता अपेक्षाकृत सामान्य होता गया। दिल को राहत मिलने लगी, लेकिन मन उस ऊपर छूटे स्वर्गीय दृश्य में ही अटका रहा।

यह यात्रा केवल एक मार्ग नहीं थी — यह एक अनुभव था। एक तरफ नीली, शांत, अद्भुत पैंगोंग झील का सौंदर्य, और दूसरी ओर चंगला पास के पास का बर्फ से ढका निर्जन सौंदर्य। इस पूरे मार्ग में प्रकृति का अलग-अलग रंगों में दर्शन हुआ — कभी जल, कभी हिम, कभी धूप, तो कभी तीव्र ठंड। इस यात्रा ने हमें सिखाया कि प्रकृति जितनी सुंदर है, उतनी ही चुनौतीपूर्ण भी।

अब जब पीछे मुड़कर सोचता हूँ, तो लगता है कि यह यात्रा केवल एक भौगोलिक मार्ग नहीं था, बल्कि आत्मा को छू जाने वाला अनुभव था। डर, रोमांच, सौंदर्य और श्रद्धा — इन सब भावनाओं का सम्मिलित संगम।

यह सफर हमेशा के लिए स्मृतियों में संजोकर रख लेने योग्य बन गया — एक ऐसा अध्याय जो शब्दों से परे है, परंतु शब्दों के माध्यम से ही साझा किया जा सकता है।

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