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नुब्रा घाटी से पैंगोंग तक – एक अविस्मरणीय हिमालयी यात्रा

सुबह की शुरुआत: हुन्दर से विदा

लद्दाख की नुब्रा घाटी के प्रसिद्ध हुन्दर गांव में ठंडी सुबह की हवा के साथ हमारी पैंगोंग झील की ओर यात्रा शुरू हुई। यह वह यात्रा थी जिसका हमें कई दिनों से इंतजार था। जैसे ही हमारी गाड़ी श्योक नदी के किनारे-किनारे चलने लगी, एक अलग ही सुकून का अहसास हुआ। लद्दाख की सड़कों की सुंदरता और शांत परिवेश एक अलग ही ऊर्जा भर देता है।

श्योक नदी का संग और पहाड़ी सौंदर्य

पूरे रास्ते स्योक नदी ने हमारा साथ निभाया। यह नदी लद्दाख की रग-रग में बहती है—मौन, लेकिन प्रभावशाली। रास्ता कहीं संकरा, कहीं खुला, तो कहीं दोनों ओर पत्थर और चट्टानों से घिरा हुआ। हर मोड़ पर नया दृश्य, नई प्रेरणा।

शाम को पैंगोंग झील पर पहला दृष्टि-स्पर्श

जब शाम के करीब पाँच बजे हम पैंगोंग झील पहुँचे, तो एक पल के लिए सब कुछ थम गया। इतनी विशाल, शांत और सुंदर झील—जैसे किसी कलाकार ने आकाश के रंगों से ज़मीन पर चित्र उकेरा हो। दूर-दूर तक फैली नीली झील, ऊपर साफ नीला आसमान और सामने ऊँचे पर्वत—यह दृश्य मन को मंत्रमुग्ध कर गया।

तेज बर्फीली हवा चल रही थी, जो हमारे आगमन का स्वागत कर रही थी। हम झील के किनारे बस खड़े होकर इस सौंदर्य को निहारते रहे। पानी लगातार लहराता रहा, मानो हमें बुला रहा हो। हवा के साथ झील की लहरें भी नाच रही थीं।

ऊँचाई की चुनौती और अनुभव का सुख

यहाँ पर ऑक्सीजन की कमी का असर महसूस हुआ। साँसें थोड़ी भारी हो रही थीं, लेकिन यह भी एक अनुभव था। ऐसे चुनौतीपूर्ण वातावरण में प्रकृति से इतना निकट जुड़ पाना अपने आप में एक वरदान जैसा लगा।

सबसे रोचक बात यह थी कि इतनी ऊँचाई पर स्थित यह झील खारे पानी की है। यह वैज्ञानिक रहस्य इसे और भी खास बना देता है। पैंगोंग सिर्फ सुंदर नहीं है, यह अनोखी भी है।

मेराक की ओर – झील के साथ चलती यात्रा

हमने झील के किनारे-किनारे करीब 20 किलोमीटर दूर मेराक नामक गांव तक की यात्रा की। रास्ते में झील के रंग बदलते रहे—कभी गहरा नीला, कभी फिरोज़ी, तो कभी ग्रे और बैंगनी की झलक भी। यह रंगों का जादू प्राकृतिक प्रकाश और बादलों के चलते चलता रहा।

होमस्टे अनुभव – झील के सामने, पहाड़ की गोद में

मेराक गांव में हमने एक स्थानीय होमस्टे में रुकने का निर्णय लिया। यहाँ का अनुभव अत्यंत आत्मीय था। घर के पीछे बर्फ से ढके पहाड़ और सामने झील—प्रकृति के दो अत्यंत सुंदर रूप एक साथ। रात में तापमान शून्य से नीचे चला गया, लेकिन यह ठंड भी सुखद लग रही थी।

रात का जादू – तारों भरा आकाश और झील का मौन

रात में जब हम झील के किनारे गए, तो आकाश तारों से भरा था। झील शांत थी, हवा ठंडी और वातावरण बिल्कुल नीरव। यह वह क्षण था जब समय जैसे थम गया हो। आत्मा को जो शांति मिली, उसे शब्दों में बाँधना कठिन है।

एक यात्रा, एक जीवन अनुभव

यह यात्रा केवल एक स्थल भ्रमण नहीं थी, यह आत्मा को छूने वाला अनुभव था। पैंगोंग झील ने हमें सिखाया कि प्रकृति का मौन भी बहुत कुछ कहता है—बिना बोले, बिना शोर किए।

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